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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2709
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

प्रश्न- निर्देशन की आवश्यकता से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।

उत्तर -

निर्देशन की आवश्यकता

आधुनिक समय में मानव-जीवन में बड़ी तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं। आज के बदलते हुए युग के परिणामस्वरूप जीवन के मूल्यों, मापदण्डों और आवश्यकताओं आदि में तीव्रता से परिवर्तन होते रहते हैं। आज के वैज्ञानिकता के इस युग में हमें सभी पुरानी विचारधाराएँ पिछड़ती हुई दिखाई दे रही हैं। आज के इस युग में वैयक्तिक, सामाजिक, शैक्षिक और व्यावसायिक सभी क्षेत्रों में समस्याएँ ही समस्याएँ दिखाई दे रही हैं। इन तेजी से होते परिवर्तनों के फलस्वरूप हम अपने शैक्षिक व्यवहार एवं जीवन के उद्देश्यों को निश्चित करने में कठिनाई का अनुभव कर रहे हैं और इसी कारण से निर्देशन की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। निर्देशन की आवश्यकता के महत्त्व के सम्बन्ध में कुप्पूस्वामी महोदय ने भी लिखा है कि, "निर्देशन की आवश्यकता सभी युगों में रही है, परन्तु आज इस देश (भारत) में, जो दशाएँ उत्पन्न हो रही हैं, उन्होंने इस आवश्यकता को और भी अधिक बलवती बना दिया है।”

शैक्षिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता

(1) पाठ्य-विषयों का चयन करने के लिए - वर्तमान समय में विज्ञान, कला, वाणिज्य, तकनीकी और व्यावसायिक क्षेत्रों से सम्बन्धित विभिन्न विषय विद्यार्थियों को पढ़ाये जाते हैं। इन विभिन्न विषयों का चुनाव विद्यार्थी की अपनी रुचियों, क्षमताओं और योग्यताओं के अनुकूल होना चाहिए।

विद्यार्थी विभिन्न पाठ्य-विषयों का चुनाव करने में अपने आपको असफल अनुभव करते हैं इसलिए उनको पर्याप्त निर्देशन की आवश्यकता होती है। माध्यमिक शिक्षा आयोग ने भी 1953 में इस बात की आवश्यकता पर बल दिया है। पाठ्यक्रम में कुछ विषय अनिवार्य होने चाहिए और कुछ वैकल्पिक। वैकल्पिक विषयों में से भी विद्यार्थी को विभिन्न विषयों में से किसी एक विषय को चुनना होता है इसलिए भी उसे निर्देशन की आवश्यकता पड़ती है।

(2) अनुशासनहीता की समस्या को दूर करने के लिए - आजकल शिक्षा जगत के विभिन्न स्तरों पर अनुशासनहीनता की समस्या तेजी से बढ़ रही है। प्रतिदिन तोड़फोड़ और हड़ताल आदि आम बात हो गई है। विद्यार्थियों में तेजी से बढ़ती हुई अनुशासनहीनता का कारण है कि वर्तमान शिक्षा विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को संतुष्ट करने में असफल रही हैं। इस बढ़ती हुई अनुशासनहीनता की समस्या को निर्देशन की सहायता से दूर किया जा सकता है।

(3) विद्यार्थियों की संख्या में निरन्तर वृद्धि - वर्तमान समय में शिक्षा के सभी स्तरों पर छात्रों की निरन्तर वृद्धि को ध्यान में रखते हुए एवं सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार उनकी शिक्षा व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने में निर्देशन एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

(4) अपव्यय तथा अवरोधन की समस्या को हल करने के लिए - वर्तमान शिक्षा जगत् में अपव्यय और अवरोधन की समस्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। इस समस्या को दूर करने के लिए भारत सरकार भी भरसक प्रयत्न कर रही है। प्रत्येक वर्ष लाखों विद्यार्थी बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं या वार्षिक परीक्षाओं में असफल हो जाते हैं। इस अपव्यय तथा अवरोधन की समस्या को भी उचित निर्देशन के द्वारा हल किया जा सकता है।

(5) शिक्षा के क्षेत्र में विविधता - ज्ञान की राशि निरन्तर बढ़ती जा रही है। इसकी नई-नई शाखाएँ निकलती रहती हैं। सामान्य शिक्षा प्राप्त कर लेने के बाद बालक को शिक्षा के किस क्षेत्र में विशिष्टीकरण करना चाहिए यह समस्या हर बालक के सामने आती है। साथ ही यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि शिक्षा और जीवन तथा शिक्षा और व्यवसाय का भी घनिष्ठ सम्बन्ध है। अस्तु, बालक के सामने यह भी प्रश्न रहता है कि वह किस प्रकार की शिक्षा प्राप्त करे, कौन-कौन से विषय पढ़े, ताकि जीवन में सबसे अधिक *सफल हो सके और अपनी रुचि और क्षमता के अनुकूल उपयुक्त व्यवसाय चुनने में उसे मदद मिले। इसलिए उपयुक्त पाठ्य-विषयों का चुनाव करने में बालक की मदद करने के लिए भी निर्देशन की आवश्यकता है।

(6) पिछड़े हुए बालकों व प्रतिभाशाली बालकों के निर्देशन के लिए - प्रत्येक विद्यालय में कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो कि उचित रूप से शिक्षा में उन्नति नहीं कर पाते हैं। ऐसे बालकों के लिए शिक्षण विधि में संशोधन करना, रुचिकर पाठ्यक्रमों का चुनाव और उनके लिए उचित श्रव्य साधनों का प्रबन्ध करना निर्देशन के द्वारा ही संभव है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक कक्षा में कुछ बालक अन्य बालकों की तुलना में प्रतिभाशाली अर्थात् कुशाग्र बुद्धि के होते हैं जो कि सामान्य पाठ्यक्रम, सामान्य ज्ञान और सामान्य विधियों से सन्तुष्ट नहीं हो पाते हैं, ऐसे बच्चों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि उनको ऐसी सुविधाएँ प्रदान की जाए जिससे उनकी जिज्ञासा की प्रवृत्ति को शान्त किया जा सके. और वे अपनी बौद्धिक क्षमता के अनुसार शिक्षा प्राप्त कर सकें।

(7) व्यवसाय के ज्ञान के लिए - व्यवसायों की जटिलता के कारण व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता है। दूसरे हमारे देश में बेरोजगारी निरन्तर तीव्र गति से बढ़ती जा रही है जिसके मुख्य कारण बालकों द्वारा उचित पाठ्यक्रमों का चुनाव न कर पाना, बिना सोचे-समझे उच्च शिक्षा प्राप्त करते रहना तथा विभिन्न व्यवसायों के सम्बन्ध में जानकारी न होना है। इन सभी समस्याओं को निर्देशन की सहायता से दूर किया जा सकता है।

(8) प्रतिभाशाली बालकों के लिए निर्देशन की आवश्यकता - हर श्रेणी में कुछ ऐसे बालक होते हैं जो प्रतिभावान होते हैं। सामान्य पाठ्यक्रम उन बालकों को सन्तुष्ट नहीं कर सकता। ऐसे बालकों के लिए शिक्षा की विशेष व्यवस्था की जाए, ताकि वह उनकी प्रखर बुद्धि के अनुरूप हो। कभी-कभी प्रतिभाशाली बालक कुछ समस्याओं के शिकार हो जाते हैं और उनकी उपलब्धि सामान्य से कम रहती है। ऐसी स्थिति में उनके लिए निर्देशन की सेवा लाभदायक सिद्ध हो सकती है।

सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता

समाज की सुरक्षा और प्रगति के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपना योगदान करना है। प्रत्येक व्यक्ति को इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाए कि वह एक योग्य एवं क्रियाशील नागरिक बन जाए। इस बदलते हुए सामाजिक परिवेश में व्यक्ति के विकास को सही दिशा देने में निर्देशन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है-

(1) स्त्रियों के नौकरियों में समायोजन करने के लिए - आज़कल स्त्रियाँ विभिन्न प्रकार की नौकरियों में प्रवेश कर रही हैं जिसके कारण उनकी सामाजिक और पारिवारिक स्थिति में गहरा बदलाव आया है। उनके बच्चों को माँ के प्यार एवं देखभाल से वंचित रहना पड़ता है। इस कारण उनकी पारिवारिक स्थिति को मजबूत बनाने के लिए निर्देशन की आवश्यकता है।

(2) अवकाश का सदुपयोग करने के लिए - आज के बदलते हुए और वैज्ञानिक युग में प्रत्येक व्यक्ति आवश्यकता से ज्यादा व्यस्त रहता है। इस व्यस्तता के कारण वह अपने अवकाश के समय का भी उचित ढंग से उपयोग नहीं कर पाता है। निर्देशन के द्वारा व्यक्तियों को उनके अवकाश के समय के सही सदुपयोग और सदुपयोग की विभिन्न विधियों से अवगत कराया जा सकता है।

(3) नगरीकरण की समस्या को नियन्त्रित करने के लिए - आज औद्योगीकरण तथा बदलती हुई सामाजिक परिस्थितियों के कारण अधिकांश लोग नगरों में जाकर रहने लगे हैं जिसके कारण गाँवों की अपेक्षाकृत शहरों की आबादी बढ़ रही है। नगरीकरण की समस्या को नियंत्रित करने में निर्देशन सेवा सहायक सिद्ध होती है।

(4) सामाजिक, नैतिक और धार्मिक मूल्यों में परिवर्तन के कारण - आज के इस बदलते हुए समाज में सामाजिक, नैतिक और धार्मिक मूल्यों में भी तेजी से परिवर्तन हुए हैं जिसके कारण व्यक्तियों के जीवन स्तर व सोच में गहरा बदलाव आया है। इन परिवर्तनों के कारण सांमाजिक तनाव भी शीघ्रता से बढ़ रहा है। इन बदलती हुई सामाजिक परिस्थितियों में निर्देशन की सहायता से व्यक्तियों को इन विभिन्न प्रकार के मूल्यों की महत्ता से अवगत कराया जा सकता है।

(5) घर एवं परिवार की बदलती हुई परिस्थितियों के कारण - आज के समाज में घर और परिवार की परिस्थितियों में तेजी से परिवर्तन आ रहा है। संयुक्त परिवार प्रथा शहरों और गाँवों में लगभग समाप्त सी हो रही है तथा एकल परिवार की प्रथा चल पड़ी है। इस कारण पारिवारिक संस्कार, बच्चों की शिक्षा, पालन-पोषण, भाई-चारे की भावना और विचारों में गहरा बदलाव आया है। इन बदलती हुई परिस्थितियों में उचित निर्देशन की आवश्यकता है।

(6) पारिवारिक और सामाजिक तनाव दूर करने के लिए - प्रायः परिवार या समाज में तमाम लोग एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं। उनमें प्रायः संघर्ष हो जाया करते हैं। दो व्यक्तियों के स्वार्थ जहाँ टकराते हैं वहीं संघर्ष होता है। संघर्ष मानसिक तनाव को जन्म देता है। व्यक्ति को वातावरण से सामंजस्य स्थापित करने में कठिनाई होती है। सामाजिक सम्बन्ध को सुधारने और व्यक्ति का मानसिक तनाव कम करने के लिए निर्देशन की आवश्यकता है।

(7) श्रम एवं उद्योग की परिवर्तित दशाएँ - पहले लोग अपने परम्परागत व्यवसायों को अपना लेते थे। पर अब व्यवसायों की संख्या तथा विविधता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। व्यवसायों में विशिष्टीकरण विशेष रूप से हो रहा है। विभिन्न व्यवसायों में कार्य प्रणाली विभिन्न प्रकार की होती है। प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक प्रणाली के अनुसार कार्य नहीं कर सकता। अतः निर्देशन द्वारा ही उपयुक्त प्रणाली का चयन सम्भव है।

(8) उचित नियोजन की आवश्यकता - यदि एक व्यक्ति को अपनी क्षमताओं एवं योग्यताओं के अनुसार काम मिलता है तो उसमें कार्य संतुष्टि होती है। इससे व्यक्ति की कार्य कुशलता भी बढ़ जाती है। इस कार्य में निर्देशन अधिक सहायक सिद्ध हो सकता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निर्देशन का क्या अर्थ है? निर्देशन की प्रमुख विशेषताओं तथा क्षेत्र पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- निर्देशन के महत्वपूर्ण उद्देश्य कौन-कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
  3. प्रश्न- निर्देशन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- निर्देशन की आवश्यकता से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- "व्यावसायिक निर्देशन शैक्षिक निर्देशन पर प्रभुत्व रखता है।" स्पष्ट कीजिये एवं इस कथन का औचित्य बताइये।
  6. प्रश्न- निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- निर्देशन की आधुनिक प्रवृत्तियाँ क्या हैं?
  8. प्रश्न- निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- निर्देशन के विषय क्षेत्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  10. प्रश्न- निर्देशन तथा शिक्षा में कौन-कौन से मुख्य अन्तर हैं? स्पष्ट कीजिए।
  11. प्रश्न- निर्देशन के कार्य क्या हैं?
  12. प्रश्न- निर्देशन की प्रकृति का उल्लेख कीजिए।
  13. प्रश्न- भारत में निदर्शन की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- "समृद्ध भारत के लिये निर्देशन सेवाओं की अत्यधिक आवश्यकता है।" विभिन्न परिप्रेक्ष्य में इस कथन की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  16. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के मुख्य उद्देश्यों तथा शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? व्यक्तिगत निर्देशन के स्वरूप एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर व्यक्तिगत निर्देशन के उद्देश्यों या कार्यों का वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व और आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- छात्रों के व्यावसायिक निर्देशन में विद्यालय क्या भूमिका निभा सकता है?
  23. प्रश्न- "व्यक्तिगत निर्देशन, निर्देशन का मूलाधार है।" इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  24. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन की शिक्षा के क्षेत्र में क्यों आवश्यकता है? स्पष्ट कीजिए।
  28. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? इसके मुख्य उद्देश्य बताइए।
  29. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के सिद्धान्त क्या है स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयोगिता का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- सूचना सेवा से आप क्या समझते हैं? सूचना सेवाओं के उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- सूचना सेवा की कार्य विधि का वर्णन कीजिए।
  33. प्रश्न- नियोजन सेवा से आप क्या समझते हैं? विद्यालय के नियोजन सम्बन्धी कार्यों एवं उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- किसी विद्यालय के निर्देशन सेवा के संगठन की आधारभूत आवश्यकताओं का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- निर्देशन सेवा में विद्यालय स्तर पर कार्यरत प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका का विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अनुवर्ती सेवाओं से आप क्या समझते हैं? इसका क्या प्रयोजन है? अध्ययनरत छात्रों के लिए अनुवर्ती सेवाओं की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- छात्र सूचना या वैयक्तिक अनुसूची सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- सूचना सेवा की आवश्यक सामग्री का उल्लेख कीजिए।
  41. प्रश्न- नियोजन सेवा के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- परामर्श सेवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- सूचना सेवा कितने प्रकार की होती है? विवेचना कीजिए।
  44. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन में आवश्यक सूचनाओं को बताइए।
  45. प्रश्न- व्यक्ति निर्देशन में आवश्यक सूचना को बताइये।
  46. प्रश्न- भारत में व्यवसाय से सम्बन्धित सूचनाओं के प्रमुख स्रोत क्या हैं?
  47. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में परिवार की क्या भूमिका होती है?
  48. प्रश्न- अनुकूलन सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी आवश्यकता के क्या कारण हैं? स्पष्टतया समझाइये।
  49. प्रश्न- उपचारात्मक सेवाओं से आप क्या समझते हैं?
  50. प्रश्न- अनुवर्ती अध्ययन की समस्याएँ एवं समाधान का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों का अनुवर्ती अध्ययन क्यों आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  52. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों के अनुवर्ती अध्ययन की विधियों का वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- कृत्य विश्लेषण एवं कृत्य संतोष में क्या सम्बन्ध है?
  54. प्रश्न- विद्यालयों में निर्देशन सेवाओं से आप क्या समझते हैं? विद्यालय निर्देशन- सेवाओं के संगठन के प्रचलित सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  55. प्रश्न- माध्यमिक स्तर पर निर्देशन सेवाओं के संगठन का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा के प्रमुखं कार्य कौन-कौन से हैं? प्राथमिक तथा सैकेण्ड्री स्कूल स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम संगठन के उद्देश्यों तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- विद्यालयी निर्देशन सेवाओं के संगठन की मुख्य संकल्पनाएँ क्या हैं? इसकी आवश्यकता व क्षेत्र क्या है? वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- वर्णन कीजिए कि आप एक शिक्षक के रूप में माध्यमिक स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम को किस प्रकार से संगठित करेंगे?
  59. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा द्वारा किये जाने वाले मुख्य कार्यों की विवेचना कीजिए।
  60. प्रश्न- विद्यालय की निर्देशन संगठन सेवा का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन सेवाओं के सफल संगठन के लिए किन-किन मुख्य बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन कार्यक्रमों के सफल संचालन हेतु किन-किन कर्मचारियों की आवश्यकता होती है? स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं के विभिन्न रूपों तथा सिद्धान्तों को संक्षिप्त रूप में बताइए।
  64. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के महत्व की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श के उद्देश्य तथा सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श की आवश्यकता तथा महत्व का वर्णन कीजिए। अथवा छात्र परामर्श की आवश्यकता बताइये।
  68. प्रश्न- परामर्श की प्रक्रिया को समझाइए।
  69. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  70. प्रश्न- परामर्श से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- परामर्श और निर्देशन में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता में कौन-कौन से गुणों का होना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  73. प्रश्न- परामर्श से सम्बन्धित प्रमुख परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- परामर्श के उद्देश्यों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  75. प्रश्न- "एक परामर्शदाता के लिये समूह गतिशीलता का ज्ञान होना आवश्यक है।" स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- धर्म-परामर्श में सह-सम्बन्ध बताइये।
  77. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त-अध्ययन विधि से आप क्या समझते हैं? इसके गुणों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र क्या है? संचित अभिलेख पत्र की विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? इस पत्र की उपयोगिता की व्याख्या कीजिए।
  79. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि से आप क्या समझते हैं? साक्षात्कार प्रविधि के मुख्य तत्त्वों विशेषताओं एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- निर्धारण मापनी या रेटिंग स्केल से आपका क्या अभिप्राय है? इनकी मुख्य विशेषताओं तथा प्रकारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के कितने प्रकार हैं? अनिर्देशित साक्षात्कार प्रविधि के लाभ एवं सीमाएँ बताइए।
  82. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र के निर्माण के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  83. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त अध्ययन प्रविधि की सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  84. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के गुणों का वर्णन कीजिए।
  85. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि या निर्धारण मापनी को परिभाषित कीजिए।
  86. प्रश्न- साक्षात्कार विधि के मुख्य उपयोगों के बारे में संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट करें।
  88. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन प्रविधि के दोषों पर प्रकाश डालिए।
  89. प्रश्न- प्रश्नावली प्रविधि के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि की कमियों या सीमाओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- संचयी आलेख का अर्थ बताइए।
  92. प्रश्न- परामर्श प्रदान करने की मुख्य प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श की प्रविधियों की मुख्य धारणाओं, सोपानों तथा लाभ एवं कमियों का उल्लेख कीजिए।
  93. प्रश्न- परामर्श की प्रमुख प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशन और परामर्श में साक्षात्कार प्रविधि क्यों अधिक उपयोगी सिद्ध हुई है? स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- समन्वित परामर्श से आप क्या समझते हैं? समन्वित परामर्श की मुख्य धारणाओं, लाभों तथा कमियों एवं सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श तथा निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  96. प्रश्न- निर्देशन के साधन क्या हैं?
  97. प्रश्न- निर्देशात्मक परामर्श की प्रमुख विशेषताओं और सीमाओं पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- अनिदेशात्मक परामर्श से क्या तात्पर्य है? अनिदेशात्मक परामर्श की मूल धारणाओं का उल्लेख कीजिए।
  99. प्रश्न- निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  100. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श के मुख्य कार्यों को संक्षेप में बताएँ।
  102. प्रश्न- समन्वित परामर्श मुख्य चरणों या पदों को संक्षिप्त रूप में स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- निर्देशीय परामर्श के मुख्य चरण या सोपान कौन-कौन से हैं? स्पष्ट कीजिए।
  104. प्रश्न- परामर्श के किसी एक उपागम का वर्णन कीजिए।
  105. प्रश्न- परामर्शदाता की विशेषताओं, गुणों तथा व्यावसायिक नीतिशास्त्र का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- परामर्शदाता की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  107. प्रश्न- परामर्शदाता में किस प्रकार का अनुभव होना आवश्यक है, बताइये।
  108. प्रश्न- परामर्शदाता का प्रशिक्षण कार्यक्रम बताइये।
  109. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  110. प्रश्न- परामर्शदाता के व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषकों का उल्लेख कीजिए।
  111. प्रश्न- क्रो एवं क्रो के अनुसार परामर्शदाताओं के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- परामर्शार्थी और परामर्शदाता के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
  113. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की आवश्यकता बताइए तथा निर्देशन केन्द्रों के उद्देश्य भी बताइए।
  114. प्रश्न- भारत में निर्देशन एवं परामर्श की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  115. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों के कार्य बताइए।
  116. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  117. प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार, विशेषताएँ एवं सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  118. प्रश्न- बुद्धि के मापन से आप क्या समझते हैं? बुद्धि परीक्षणों के प्रकार का वर्जन करते हुए बुद्धिलब्धि को कैसे ज्ञात किया जाता है? स्पष्ट कीजिए।
  119. प्रश्न- शिक्षा और निर्देशन में बुद्धि परीक्षणों की उपयोगिता की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- रुचि क्या है? रुचि की महत्वपूर्ण विशेषताओं और प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- अभिवृत्ति का क्या अर्थ है? अभिवृत्ति परीक्षण का वर्णन कीजिए।
  122. प्रश्न- 'रुचि आविष्कारिकाएँ' क्या मापन करती हैं? कम से कम दो रुचि आविष्कारिकाओं का नाम बताइए।
  123. प्रश्न- बुद्धि कितने प्रकार की होती है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- बुद्धि की मुख्य विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- बुद्धि के अर्थ तथा स्वरूप पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  126. प्रश्न- रुचि का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए।
  127. प्रश्न- रुचियों के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं? संक्षेप में बताइये।
  128. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में रुचि सूचियों के लाभ का वर्णन कीजिए।
  129. प्रश्न- रुचि-सूचियों की कमियां या दोषों का उल्लेख कीजिए।
  130. प्रश्न- अभिवृत्ति के वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।
  131. प्रश्न- अभिवृत्ति से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  132. प्रश्न- भारतवर्ष में रुचि मापन के कार्यों पर प्रकाश डालिये।.
  133. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका की विवेचना कीजिए।
  134. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  135. प्रश्न- विशिष्ट बालकों से क्या अभिप्राय है? उनकी क्या विशेषताएँ हैं? पिछड़े बालकों की शिक्षा एवं समायोजन के लिये निर्देशन व परामर्श का एक कार्यक्रम तैयार कीजिए।
  136. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श कर्मचारी वर्ग के रूप में प्रधानाचार्य की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  137. प्रश्न- विशिष्ट बालकों को निर्देशन व परामर्श देते समय क्या सावधानियाँ रखी जानी चाहिये? वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- चिकित्सा कर्मचारी किस प्रकार निर्देशन प्रक्रिया में योगदान देते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  139. प्रश्न- निर्देशन प्रक्रिया में शारीरिक शिक्षक के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  140. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  141. प्रश्न- प्रधानाचार्य के निर्देशन सम्बन्धी उत्तरदायित्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  142. प्रश्न- निर्देशन में शिक्षक की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  143. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मनोचिकित्सक की भूमिका बताइये।

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